Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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रावण का पराक्रम
कुम्भकर्ण और विभीषण अपने पितामह की शत्रुता भूले नहीं थे। उन्होंने लंकापुरी में उपद्रव करना प्रारम्भ कर दिया। उनके उत्पातों से तंग आकर एक दिन वैश्रवण ने अपना दूत पाताल लंका में समाली के पास भेजा और कहलवाया -.:... - -राजन् ! तुम तो हमारी शक्ति को जानते हो। अपने पोतों विभीषण और कुम्भकर्ण को समझा दो, अन्यथा पाताल लंका से भी निकाल दिये जाओगे।
राज्यसभा में रावण भी उपस्थित था। उसने कुपित होकर उत्तर दिया--दूत ! तुम्हारा स्वामी वैश्रवण स्वयं किसी का नाम भी हमको धमकी देने का साहस करता है । उससे जाकर को इस धृष्टता का दण्ड देने रावण स्वयं आ रहा है। ....
रावण की कुपितः मुद्रा देखकर दूत चला आया और अपने स्वामी को सम्पूर्ण वृत्तान्त बता दिया । ... वैश्रवण क्रोधित होकर सैन्य सहित लंका
का से बाहर निकला तो . रावण ससैन्य उसका स्वागत करने का तयार खडा मिला। - युद्ध प्रारम्भ हो गया किन्तु रावण के ही
राक्षस सुभटो ..