Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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रावण का जन्म
पाताल लंका में सुमाली की पत्नी प्रीतिमती ने एक पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम रखा गया रत्नश्रवा । युवावस्था प्राप्त करके कुमार रत्नश्रवा एक वार विद्या सिद्ध करने के लिए कुसुमोद्यान मैं गया । वहाँ एकान्त में वह आसन जमाकर बैठा । हाथ में अक्षमाला, नासाग्र दृष्टि, हृदय में मन्त्र का ध्यान करता हुआ वह चित्र-सा प्रतीत होता था ।
उसी समय निर्दोष अंगवाली एक दिव्य कुमारी उसके सम्मुख आई और बोली - मानव सुन्दरी नाम की महाविद्या मैं तुम्हें सिद्ध हो गई हूँ |
रत्नश्रवा ने जप छोड़कर सुन्दरी की ओर देखा और पूछा--- महाभागे ! आप कौन हैं ?
युवती ने अपना परिचय दिया
मैं कौतुकमंगल नगर के स्वामी विद्याधर राजा व्योमविन्दु की पुत्री केकसी हूँ। मेरी बड़ी बहन कौशिका का विवाह यक्षपुर के राजा विश्रवा के साथ हुआ था । उसका पुत्र वैश्रमण इस समय लंका का राजा है । किसी निमित्तज्ञानी के कथनानुसार मेरे पिता ने मुझे तुमको अर्पित कर दिया, इसीलिए मैं तुम्हारे पास आई हूँ ।