Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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रावण का जन्म | ३१ शिशु दशमुख शनैः-शनैः बढ़ने लगा। माता-पिता अपने भावी अर्द्धचक्री पुत्र को देखकर आनन्द विभोर हो जाते ।
केकसी सूर्य को स्वप्न में देखकर पुन: गर्भवती हुई और भानुकर्ण नाम के पुत्र को जन्म दिया। इसका लोक प्रसिद्ध दूसरा नाम कुम्भकर्ण पड़ा। चन्द्रमा के समान नखवाली एक पुत्री चन्द्रनखा की माता भी केकसी वनी और यह कन्या सूर्पनखा के नाम से जग-प्रसिद्ध हुई । तदनन्तर केकसी ने स्वप्न में चन्द्रमा देखा और उसके एक पुत्र जन्मा जो विभीषण नाम से जाना गया।
को निकाल दिया। सहस्रग्रीव वहाँ से चलकर लंकापुरी में आया और उसने वहाँ तीस हजार वर्ष तक राज्य किया। उसके पुत्र का नाम शतग्रीव था और उसने पच्चीस हजार वर्ष तक राज्य किया । उसके वाद उसके पुत्र पचासग्रीव ने वीस हजार वर्ष तक और उसके पुत्र पुलस्त्य ने पन्द्रह हजार वर्ष तक राज्य किया । पुलस्त्य के मेघश्री नाम की एक रानी थी। उसके उदर से दशानन नाम का पुत्र हुआ । इसकी उत्कृष्ट आयु चौदह हजार वर्ष की थी। विशेष-रानी मेघश्री के उदर से जन्म लेने वाला दशानन पूर्वभव में सौधर्म देवलोक में देव था और उससे पहले जन्म में धातकीखण्ड द्वीप के सार समुच्चय देश के नाकपुर नगर का राजा नरदेव था। नरदेव ने अनंत गणधर से प्रव्रज्या ली किन्तु चपलवेग विद्याधर राजा की समृद्धि देखकर निदान कर लिया। इसी कारण यह प्रति वासुदेव दशानन बना।
(पर्व ६८ श्लोक ३-७) वाल्मीकि रामायण में रावण के जन्म की दूसरी घटना दी गई है। माता का नाम तो केकसी ही है किन्तु पिता मुनि विश्रवा बताये गये है । संक्षेप में घटना इस प्रकार है
एक बार सुमाली अपनी पुत्री केकसी को साथ लेकर वाहर निकला । उसकी दृष्टि पुष्पक विमान में बैठकर पिता से मिलने के लिए