Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३२ / जैन कयामाला (राम-कथा)
तीनों भाई दशमुख, भानुकर्ण (कुम्भकर्ण) और विभीपण तथा वहन चन्द्रनखा (सूर्पनखा) काल क्रमानुसार युवावस्था में प्रवेश कर गये।
तीनों सहोदर भाई सोलह धनुष से कुछ अधिक ऊंची काया वाले थे। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र संचालन, युद्ध-विद्या, कूटनीति आदि सभी कला और विद्याओं में निपुणता प्राप्त कर ली।
त्रिपप्टि शलाका ७१ -~-उत्तरपुराण, पर्व ६८, श्लोक ३-१२
जाते हए वैश्रवण पर पड़ गई। वैसा ही तेजस्वी पुत्र प्राप्त करने के लिए उसने अपनी कन्या को विश्रवा मुनि के पास भेजा । जिस समय केकसी ऋपि के पास पहुंची तो दारुण बेला थी। उस काल में गर्भ धारण करने के कारण उसका पुत्र दस ग्रीवा वाला और क्रूरकर्मी दशग्रीव (प्रसिद्ध नाम रावण) हुमा । दूसरी बार गर्भ धारण करने पर विशाल शरीर वाला कुम्भकर्ण; तीसरी बार जन्म लिया विकराल मुख वाली पुत्री शूर्पणखा ने और चौथी बार धर्मात्मा विभीपण ने।
सुमाली की पुत्री केकसी ऋपि विश्रवा के आश्रम में ही रहने लगी।
[वाल्मीकि रामायण : उत्तरकाण्ड]