Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
नकली इन्द्र | २५
समय अनेक अपशकुन हुए किन्तु सबकी अवहेलना करके माली अपने भाई सुमाली के साथ उसी प्रकार चला जैसे पतंगा दीपक की ओर जाता है ।
रथनूपुर के बाहर माली की सेना को देख कर इन्द्र भी अपने समस्त लोकपालों, सेनापतियों और सैन्य सहित रणक्षेत्र में आ डटा | रणभेरी बजी और युद्ध प्रारम्भ हो गया । कभी माली की सेना भंग होती तो कभी इन्द्र की । दोनों ओर के सुभट जी-जान से लड़ रहे थे ।
1
1
इन्द्र और माली में घोर संग्राम होने लगा । दोनों ही दूसरे का बचाते और अपना प्रहार करते । इन्द्र ने अपने वज्र नाम के अस्त्र का प्रयोग किया और माली रणभूमि में धराशायी हो गया ।
राजा के भूमि पर गिरते ही सेना का मनोवल टूट गया । राक्षस और वानर वीर प्राण बचाकर इधर-उधर भागने लगे । सुमाली भी भागा और पाताल लंका में जा छिपा । '
इन्द्र ने विजयी होकर कौशिका की राजा विश्रवा के पुत्र वैश्रमण को स्वर्णपुरी दिया ।
कुक्षि से उत्पन्न यक्षपुर के लंका का अधिपति बना
लंका विजय होते ही इन्द्र को अक्षय भगवान अजितनाथ के शासनकाल से क्षत्रियों की अक्षय निधि का स्वामी बन गया इन्द्र !
१ देवों की प्रार्थना पर देवलोक की ओर ने युद्ध किया । युद्ध में माली मारा लंका भाग आये ।
धनराशि की प्राप्ति हुई । संचित की हुई राक्षसवंशी
जाती हुई राक्षस सेना से विष्णु गया और माल्यवान तथा सुमाली
[ वाल्मीकि रामायण : उत्तरकाण्ड ]