Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२४ | जैन कथामाला (राम-कथा)
इन्द्र ने अपने पराक्रम से वैतादयगिरि के सभी विद्याधर राजाओं को अधीन कर लिया। अब वह स्वयं को सचमुच का इन्द्र समझने लगा । उसने इन्द्र के समान ही सात प्रकार की सेना तथा उसके सात सेनापति, तीन प्रकार की पार्पद, अपने मुख्य अस्त्र का नाम वज्र, हाथी का नाम ऐरावण, वारांगना (राज-नर्तकी) का नाम रम्भा, मन्त्री का नाम वृहस्पति और पत्तिसैन्य के नायक का नाम नैगमेपी रख दिया । इस प्रकार वह स्वयं को इन्द्र मानकर शासन संचालन करने
लगा ।
उसके चार दिक्पाल थे— सोम, यम, वरुण और कुबेर । सोम था ज्योतिःपुर के राजा मयूरध्वज और रानी आदित्य कीर्ति का पुत्र | वह पूर्व दिशा का दिक्पाल वना । दक्षिण दिशा का दिक्पाल था foforaापुरो के राजा कालाग्नि और उनकी रानी श्रीप्रभा का पुत्र यम । मेघपुर के राजा मेघरथ की रानी वरुणा के पुत्र वरुण ने पश्चिम दिशा का दिकपालत्व ग्रहण किया और कांचनपुर के राजा सुर की रानी कनकावती के पुत्र कुबेर को उत्तर दिशा का दिक्पालत्व मिला ।
दिक्पाल आदि सभी समृद्धियों से विभूषित होकर वह राज्य करने लगा । अपने इन्द्रपने के अभिमान में वह किसी को अपने सम्मुख अश्व, हाथी आदि पर न बैठने देता, सभी का तिरस्कार करता, किसी को कुछ न समझता ।
उसका यह अभिमान लंकापति माली को सहन न हो सका । माली ने उसकी अवहेलना प्रारम्भ कर दी । परिणामस्वरूप युद्ध का समुचित कारण उत्पन्न हो गया । माली ने राक्षसों और वानरों की सेना सजाई और युद्ध हेतु वैतादयगिरि की ओर चल दिया । उस
१ वानर से अभिप्राय पशु से नहीं, वरन् वानरवंशी विद्याधरों ने है 1