Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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वानरवंश की उत्पत्ति
तीर्थकर भगवान श्रेयांसनाथ के शासनकाल में लंकानगरी पर राक्षसवंशी राजा कीर्तिधवल शासन कर रहा था ।
उसी समय वैताढ्यगिरि के मेघपुर नगर में अतीन्द्र नाम का वलशाली और प्रसिद्ध विद्याधर राजा राज्य करता था । उसकी रानी श्रीमती से श्रीकण्ठ नाम का तेजस्वी पुत्र और देवी नाम की रूपवती कन्या हुई । अनुक्रम से दोनों भाई-बहनों ने युवावस्था में प्रवेश किया ।
युवती कन्या वैसे ही आकर्षक होती है और यदि वह रूपवती भी हो तो अनेक कामी पुरुषों के आकर्षण का केन्द्र वन जाती है । बहुत से पुरुष उसकी याचना करने लगते हैं । रत्नपुर के विद्याधर राजा पुष्पोत्तर ने भी अपने पुत्र पद्मोत्तर के लिए राजा अतीन्द्र से उसकी पुत्री देवी की याचना की । परन्तु अतीन्द्र ने उसकी याचना की अवहेलना करके देवी का विवाह राक्षसपति कीर्तिधवल के साथ कर दिया |
इस बात पर पद्मोत्तर ने अपने हृदय में श्रीकण्ठ के प्रति शत्रुता की गाँठ बाँध ली। जिसकी इच्छा पूरी नहीं होती उसे बुरा लगता ही है ।