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भी परायों का प्रकाशक देसा जाता है ठीक उर्मा प्रकार आत्मज्ञान भी पदा थों से उत्पन्न न होने
पर मी पदार्थों का प्रकाशक मानाजाता है। प्रश्न --शान नित्य है किन्वा अनित्य ? उतर--कथाचित् नित्य और क्थचित अनित्य भी है प्रश्न-यह दो पातें किस प्रकार मानी जाय कि ज्ञान नित्य
भी है और अनित्य भी है ? । उत्तर -न मत में सर्व पदार्थों का वर्णन स्याहाद के आश्रित
होकर किया गया है जैसे कि--आत्मद्रव्य निय होमेपर. उसका ज्ञागुग भी नित्य ही माना जा सकता है परतु जिन पदार्थों का ज्ञान हुआ है ये पदार्थ अनत पर्याय युक्त हैं अत “नके पूर्व पर्याय का व्यपछेद और उत्तर पर्याय का उमाद समय २ पर होता रहता है। जब पदार्थों की इस प्रकार की दशा है तथ उनके समान उताद और व्यय नयकी अपेक्षा से ज्ञान गुग में भी नित्य पक्ष और अनित्य Gr की संभावना की जासकती है। सो उक्त न्याय से मिद हुआ कि मानगुण नित्य भी है और अनित्य भी है।
लिस प्रकार प्राग भाव और प्रध्वमा भार का ज्ञान रित्य और अनित्य माना जाता है, ठीक उसी