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भव्य पारिणामिक
जिन आत्माओं का मुक्ति गमन का स्वभाव है । परन्तु ऐसे न समझना चाहिये । मव भय आत्मा भन्न स्वभावता के ही कारण से मोक्ष हो जायेंगे किंतु जिन भव्य आत्माओं को काल, स्वभाव, निर्यात कर्म और पुम्पार्थ ये पाच समवाय मिलेंगे वेही मोक्ष के माधक बनेंगे ।
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जैसे कल्पना करो कि एक शुद्ध वीज है और उसका अकुर वा फल देने का स्वभाव भी है परन्तु जन तक उसको मी खेत [ क्षेत्र ] में बीज बोने ( वपने ) का समय निर्यात कर्म और पुरुषार्थ ये चारों समवाय सम्यगतया न मिल जावें तर तक वह शुद्ध बीज भी अकुर वा फल देने में असमर्थ है । ठीक उसी प्रकार भव्य सभाव वाले जीव को जबतक काल निर्यात कर्म और पुस्पार्थ रूप चारों समवाय न मिलें तन तक वह भी मोक्ष साधक की क्रियाओं में अपनी असमर्थता रखता है ।
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दूसरे स्वभाव के धारक जीव इस प्रकार के होते हैं
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कि यदि उन आत्माओं को उत्त समवायों में से कुछ समवाय मिल भी जायें परन्तु उनका स्वभाव मोक्ष साधक नहीं है अत वे उन समवायो की उपेक्षा ही कर लेते हैं। जैसे कि ठीक प्रकार से वर्षादि का समय यति उपस्थित भी हो जावे तथापि दुग्ध बीजादि के होने से कृषि लोग उस काल की उपेक्षा ही कर लेते हैं ।