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૨૨ प्रभा-ये उक्त पुण्य प्रतियाँ क्या अपने आप फल देने में
समर्थता रसती हैं ? उत्तर'-नय कर्म घाधने या भोगने का समय उपस्थित होता
है तब उस समय आत्मा काल, स्वभाव, निर्यात कम और पुरुषार्थ इन पाच समयापों को एकत्र कर लेना है। और जर ये पाच समयाय एक्न हो जाते हैं तर आत्मा इनके द्वारा फलां का अनुभव फरने रगता है।
पन्न --इन पाच सममाया की सिद्धि म कोई इष्टात
देकर समझाओ?
उत्तर -निस प्रकार एक कृपिरल (किसान) को अपने
खेतम धान्य बीनना है मो प्रथम तो उस धान्य के बीनने का समय (काल) ठीक होना चाहिये । जय कार ठीक है तन धान्य शुद्ध होना चाहिये क्योंकि जिस धीर का अकुर देने का स्वभाव है वही वीज़ साथक हो सकता है अन्य नहीं !
जय स्वभाव शुद्ध है तथ नियात अर्थात बाहिर की त्रियाए भी शुद्ध होनी चाहिये । इसी प्रकार उस धीजने आदि का कर्म भी यथावत होना चाहिये।