Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Swarup Library

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Page 185
________________ माम् । सो परोपकारी गायों के माय Trit जोश का ममागम अपरमेय यगदी। जिगदी ना हे गरको पामाथिक मन्द ही मिली त उनको पद मिमी परोपपारा। प्रत्येक माय को मेरे ही a परोपपार करणे फा पमा पारय । गा करा मे परोपमा परी ओर मोर ग मिलेंगे। प्रतिभा तुमारी पृति परोपकार में अदर ही रहेगी। सरकार कगम अपना जीवन बिताते हैं , मदान पुरयों के आगीवर मिण है। नया लप निमल बारमिमानों पाता है। पेपर पद पाने के योग्य होने है।ममा में एपी বু সামা সাল যা বা রুম বারে आपाती है। आत्म शानिया के विषामित दो बार पर मनुष्प दुनिया के प्रसारक महारमाओं को जी में आता है और उम समय परोपकार के पदले इममें प्रेम के साभारने गहने गाई । यद प्रेमी पाता है और अनमें पर परमात्मा फे माग एक रुपया मापारी प्राणी आम सतिया पर पता 7. परम शाति पाता है। यह परिणात पोपहारी र प्रेम मय पीपा मिशा का है।

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