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कापि नहीं । इसी प्रकार जो ब्रह्मचर्य की स्वाभाविक प्राक्ति है तो क्या फिर उस प्रकार की शक्ति कभी किसी ओषध के सेवन से आसपी है ? कदापि नहीं । अतएव मैथुन श्रीडा को त्याग कर परम पवित्र प्राचर्य प्रत
धारण करना चाहिये। जिनदास.-मिन या जिन आत्माओ ने ब्रह्मचर्य प्रत
को धारण नहीं किया हुआ है उनके सतान
उप्तन नहीं होती। जिनदत्त:-ससे क्या आप देसते या जानते नहीं हैं कि
जो अत्यत विषयी जन है प्रथम वो उनके सतान उत्पन्न ही नहीं होती। यदि होभी जाती है तो फिर यह अत्यत निर्मल और रोगों
से घिरी हुई तथा अल्पायुवाली होती है। जिससे देश का और भी अध पतन हो रहा है। ऐसा कौनसा मुक्त है जो मैथुन कीमा से नष्ट नहीं लिया सता! जैसे कि विधा का नाश किमने कि मटाने, सयम का नाश किसने किया । मैयुनीडाले
मनको निर्षल किसने बनाया।