Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Swarup Library

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Page 205
________________ २२ से बाहिर व्यायाम किया हुआ आपत्ति जनक होनाता है ठीक उसी प्रकार अधिक भोजन किया हुआ ब्रह्मचर्य की रक्षा का कारण न होता हुआ प्रत्युत हानि का कारण हो जाता है । अतपय अधिक मोजन न करना चाहिये । जिनदाम - तो फिर क्या भोजन ही न करना चाहिये । जिनदा मित्र । ऐसा नहीं, किंतु प्रमाण से अधिक भोजन न करना चाहिये । यदि भोजन ही न किया जायगा तय प्राणों का रहना अत्यन कठिन हो जायगा जिस से फिर आत्मघात पा पाप लगेगा। 1 जिनदास - मिन। यह तो में ठीक समझ गया । अब मुझे चर्य के सानवे नियम का विवरण कहिये । जिनदत्त से ध्यान पूर्वक आप सुनिये। 'नो इण पुत्र्वरयाइ पुत्र कीलियाह ममरइता भवइ ॥ ७ ॥ मियों के साथ पी हुई पूर्व कामवडा तथा रति उन क्रियाओं की स्मृति धरने से काम विकार के उत्पन्न होने की शका पी जाती है । अत पूर्व भोगो की स्मृति कदापि न परें । इसी प्रकार ब्रह्मचारिणी

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