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मनोहर और मन को रमणीक हैं उनको न देखे । क्योंकि उनरे देखने से उसके मन में काम राग के उत्पन्न होने की सभावना की जा सकेगी। अतएव वह पुरुप लियो की इद्रियों को न देखे। इसी प्रकार प्रम्हचारिणी स्त्री पुरुषों की इंद्रियों का अवलोकन न करे क्योंकि जो दोष स्त्री को देखने से पुरुष को उत्पन्न होते हैं येही दोप पुरुष को देखने से स्त्री को उत्पन्न
हो जाते हैं। जिनदास --मये । इद्रियों को देखने से किस प्रकार से
दोप उत्पन्न हो सक्त हैं ? जिनदत्त-मित्रवर्दी जिस प्रकार जिमकी आख दुसती
हो रह सूर्य को देखे, जिस प्रकार मृगी रोगयाला पुरुप जर को देसे, जिस प्रकार चोर किसी के पदार्थ को देश तथा जिम प्रकार पतग दीपक की शिसा को लेकर अपने आप में नहीं रहता ठीक उसी प्रकार कामी आत्मा सिमी भी अवयय को देखकर फिर अपना मन अपने वश में नहीं रप सफता। अतएव प्रम्हचारी पुरुष त्रियों के अगोपाग का प्रम्हचर्य की रक्षा के लिये अवलोपन न करे।