Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Swarup Library

View full book text
Previous | Next

Page 202
________________ | जिनदाम-मित्रर ! क्या स्त्री पुरुप की कोई भी फया न करनी चाहिये। जिनदत्त-प्रियवर ' सत्य और शील की दृढता सिद्ध करने के लिये स्त्री वा पुरुप की बातें करना हानि नहीं करता किंतु जिमसे मोहनीय फर्म का उदय हो जावे यह कथा प्रम्हचारी को न करनी चाहिये। जिनदास-मित्र मैं ठीक समझ गया । अब मुझे तीमरा नियम सुनाइये। जिनदत्त -प्रिय । ध्यान पूर्वक सुनिये । “नो हत्थीण मेविता भवड ३ स्त्रियों के समूह को मेवन करने बारा न होचे अर्थात् स्त्रियों के माथ बैठना और मदेव काल स्त्री वर्ग के अन्तर्गत ही रहना तथा जिम स्थान पर स्वा पैठी हो फिर उसी म्यान पर जा बैठना इस प्रकार करने से स्मृति आदि दोपों के उत्पन्न होने मे फाम चेष्टाए उत्पन्न हो जाती है। अत ब्रम्ह चारी पुरुप स्त्री का समर्ग न करे। जिनदास-ससे इस प्रकार करने में क्या दोष है? जबकि उसका मन दृढ़ है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210