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प्रद नहीं होता । तथा जहा पर साप का वास हो यहा पर पुरुषों का रहना सुख प्रद नहीं माना जा मता । तथा जहापर घुगलो का याम हो उस स्थान पर मज्जन पुरुष भी निष्कलक नहीं रह मक्का । ठीक इसी प्रकार जिस स्थान पर स्त्री, पशु तथा नपुसक निवास करते हों उस स्थान पर ब्रह्मचारी पुरुष पा रहना सुसमद नहीं माना जा मता । तथा जो चारिणी बी हो उसके लिय भी यही नियम है और यह जहा पर पुरुष पशु और नपुंसक रहते हॉ उन स्थानों को छोड़ देवे तव ही ब्रम्हचर्य
की गुप्ति ठीक रह सकी है ।
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जिनदासः सुहृदय वर्य मैं अब ठीक समझ गया किंतु अब मुझे आप ब्रम्हचर्य का दूसरा नियम सुनाइये ।
जिनदत्त प्यान पूर्वक सुनिये "नो इत्थीण कह कहिसा भवइ ॥ २ ॥ ब्रम्हचर्य पुरुष कामजन्य स्त्री की कथा न करे क्योंकि जय यह पुनः काम जन्य स्त्री की कथा करता रहता है तब उसकी आत्मा पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता क्यों कि जिस प्रकार के प्राय मन में सरकार उत्पन्न
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