Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Swarup Library

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Page 198
________________ ૩ 4 अपने पनि ध्यान में जगत के रूप का चिंत्वन करता रहता है। इतनाही नहीं किंतु उसकी आत्मा जिस प्रकार लपण की डली जलमे एक रूप होकर ठहर जाती है ठीक उसी प्रकार उस मुनि का आत्मा ध्यान में तहीन हो जाता है अर्थान् ध्याता, ध्येय और ध्यान मे हटकर केवल ध्येय में तल्लीन होजाता है । अतएव वह मुनि नो नियमो मे युक्त 'शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन 'वर सक्ता है । 1 जिनदास -ससे । वे नौ नियम कौन से हैं जिन के द्वारा शुद्ध ब्रह्मचर्य पालन किया जा मत्ता है ? } -- जिनदन्तः - भिनव । उन नियमों के नाम नौ ब्रह्मच की गुत्ति भी कहा गया है क्योंकि उन नियमों से ब्रह्मचर्य भली प्रकार में सुरक्षित रहा है जैसे कि - नव बभचेर गुत्ती ओपत नो इत्थी पसु पटग स सत्ताणि सिजा सणाणि सेवित्ता भवइ ? इसका अर्थ यह है कि नौ प्रकार मे शुद्ध ब्रह्मचर्य की गुमि प्रतिपादन की गई है जैसे कि — ब्रह्मचारी पुरुष जिस स्थान पर स्त्री, पशु और पुमक रहते हों उस स्थान पर नियाम न करें। कारण कि उनके

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