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२६ पडियद्वे यावि भवई' सादा वेदनीय कम के उदय होने मे जो मुग प्राप्त होगया हो उस में प्रतिबद्ध न होरे। अर्थात जो सासारिक मुख, मावायदनीय धर्म ये उदय से प्राप्त हो रहे हों उन में मूर्तित न होना भाचारी या मुग्य पर्वव्य है।
इम के फ्था परने का सागश यह है कि जब मामारिक मुगों म तिमोजायगा तब उसका आत्मा प्रह्मचर्य मन में पठिनता मे रह मांगा। इसलिये प्रमगारी को यह योग्य है कि यह निमी प्रगर के मुग्यों की इन 7 फरे । निस प्रकार भीतल जल पे मुग को चाहने वाला महिप जल में प्रवेश किया हुना माघ नामक जरचर जीय का भा हो जाता है ठीक उसी प्रकार प्राचारी आत्मा फिर साता के मुप को इच्छा परने मे दुपों का भोगी यन जाता है । सो उत्त विधी से सर्वति महात्मा लोग उक्त प्रत का पालन करते हैं।
जिनदास --गृहस्थ को इस प्रत का सेवन किस प्रकार
परना चाहिये।
जिनदत्त ---मित्रर्य । इस प्रत पा सेवन निम्न कथना
नुसार करना चाहिये। जैसे कि प्रथम तो