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विरास होता जाता है क्योंकि बल के लाभ से शारिरिक शक्ति बढती जाती है निम प्रकार जल के सींचने से वृक्ष प्रफुल्लित वा विकसित होने लग जाता है ठीक उसी प्रकार ब्रह्मचर्य व्रत के द्वारा शारिरिक शक्ति वृद्धि होने लगती है । तथा जिस प्रकार जल सींचने से वृक्ष प्रफुल्लित होता हुआ फिर नाना प्रकार के पुष्प वा फल देने के समर्थ हो जाता है ठीक उमी प्रकार ब्रह्मचर्य के द्वारा जव शारिरिक शक्ति पढने लगती है तब साथ ही उसके फिर आत्मिक शक्ति भी विकसित होने लग जाती है । इमलिये इस व्रत का धारण करना अत्यत आवश्यकीय बतलाया गया है । तथा यह बात भली प्रकार में मानी हुई है कि जब ब्रह्मचर्य की शक्ति आत्मा में होती है तब आत्मा प्रत्येक प्रियाओं के करने में अपनी सामर्थ्य रखता है और फिर प्रत्येक गुण उस आत्मा में स्थिति करने लग जाते है। जिस प्रकार ज्ञान में प्रत्येक पार्थ को विपय करने की शची होती है ठीक उसी प्रकार प्रामचर्य प्रत में प्रत्येक गुण के धारण
करने की शति रहती है ? जिनदास:-आत्म पिकाम किसमे होता है