Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Swarup Library

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Page 184
________________ १७९ है उसको दो। हो सकता है कि तुम नये कुए वावडी न खुदवा मा, पानी की प्याउए न लगवा मको, मगर एक रोटा पानी ता वास्तविक प्यास वाले को पिला ही मक्ते हो । भले तुम मदानत न पुरवा सकते हो मगर भूखे को एक रोटी तो दे ही सक्ते हो। भले तुम धर्म शाला न बधवा सकते हो मगर धूप से झुलसते हुए को, मर्दी से ठिठरते हुए को अथवा पानी में भीगते हुए को तुम अपने मकान में या चबूतर पर तो जगह जरूर दे सकते हो। भले तुम मुफ्त आपधालय र खुलवा सके हो, परतु रोगात पडोसी के लिये कहीं से लाकर औषध तो देही सक्ते हो। भले तुम दुसी का दुस नहीं मिटा सकते हो, परतु भीठे शब्द बोलकर उसे आश्वासन तो अवश्य दे सकते हो। दुस में डूबते हुए मनुष्य को आश्वासन भी बहुत कुछ उपार लेता है, आधा दु स दूर कर देता है । भरे ही धर्म के धडे व्याख्यान तुम न दे सक्ते हो मगर गुरु महाराज के मुग से सुनी हुई धर्म की बातें तो दूसरों को सुनाही सकते हो। भूले हरे को भले तुम उसके अभीष्ट स्थान पर न पहुचा मक्ते हो, परतु उस स्थान का पता तो अवश्यमेव बता सकते हो। इस सरह यदि छोटे २ उपकार के काम करने का अभ्यास डालोगे तो अत में तुम में महान कार्य करने की ताक्ति भी प्रक्ट होगी। यदि स्वय तुम कोई उपकार न क

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