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५ असगृहीत जन को सगृहित करना चाहिये । अर्थात
अनाथों की पालना करना चाहिये ।
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६ as को आचारगोचार सिसलाना चाहिये ।
७ रोगियों की घृणा छोड़कर सेवा करनी चाहिये ।
८ यदि मद्धर्मियों में कलह उत्पन्न होगया हो तो राग और द्वैप से रहित होकर तथा किसी भी आशा को न श्वकर
केवल माध्यस्य भाव अनलम्बन कर उस क्लेश को मिटा देना चाहिये । कारण कि छेश के ज्ञात होने से अविनय के वृद्धि करने वाले वाक्यों का अभाव होजाने से केवल शाति का राज्य स्थ पन होजायगा । कारण कि सम प्रकार के सुखों को प्रदान करने वाली एक शांति देवी है सो जब इस देवी का आगमन होता है तब उसी समय नाना प्रकार के मुस या विस्मय उत्पादन करने वाली नाना प्रकार की शचिया आत्मा में प्रादुर्भूत होने लग जाती है ।
फिर क्रमश
आत्मा निर्वाण पद प्राप्त कर लेता है । अतएव व्यर्थ व्यय को छोडकर श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी की प्रतिपादन की हुई शिक्षाओं द्वारा अपना जीवन पवित्र बनाना चाहिये ।