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वने प्रचार किये व अनेक आत्माए अघकार मार्ग में गरन कर रही हैं ।
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इन विषय की ओर उन महानुभावों का ध्यान कभी नहीं जाता। यदि उनसे इस विषय में कहा जाय से ही उत्तर प्रदान करते हैं कि क्या हम अपनी
शानन रीति को छोड़ दें ? सो यही अज्ञानता है । क्योंकि
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वस्तु के प्रचार का द्रव्य, क्षेत्र, फाल और भाव माना
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यो जब यह प्रथा आरंभ हुई हो तब उस समय यह बामसेफ पर समृद्धि शालि बना हुआ था । थे 'किसी frent area अपनी शाति में प्रीति भोजन द्वारा करनी प्रो व्यक्ति अपना सौभाग्य समझता होगा । अनुमान से प्रतीत होता है कि जैसे ब्राम्हण लोगों मृतक के पश्चात श्राद्ध कल्पन कर लिये थे ठीक उमी कार सुयोग्य व्यक्ति ने श्राद्ध यो कल्पित होने पे धारण न मानते हुए पेट शाति में मृतक के नाम पर भाति भोजन स्थापन पर दिया होगा । सो जय देश या प्रत्येक घर की द दशा ही नहीं रही है तो फिर उठ जिओ के करने की ate क्या आवश्यता है ?
इमे मो अब यह मया अच्छी प्रतीत होती है कि उम मृतक से उसके मम्यन्धियों की यथोचित विधि पे पक्ष मे सहानुभूति की जाय ।