Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 07
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Swarup Library

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Page 183
________________ १७८ लक्षण है। परोपकार में अदरुनी उचे प्रकार का मान होता है। यद्यपि प्रेम की अपेक्षा परोपकार वृत्ति का दर्जा छोटा है तथापि म्वार्थ वृत्ति की अपेक्षा इमका दनों बहुत ही बड़ा है। यद्यपि परोपकारी अपने स्वार्थ का त्याग करता है तथापि उसके अतरग म परोपकार के बदरे महान लाभ होने की आशा रहती है। परोपकार वृत्ति धोरे २ मनुष्य को प्रेम की तरफ लेजाती है। परोपकारी के हृदय में अपने भावी फ्ल्याण की सुदर आशा होती है। यद्यपि यह नहीं है तथापि वर्तमान स्थिति के लिये तो उत्तम ही है । अपना पेट तो कौए और कुत्ते भी भरते हैं, मगर दूसरों के दु सो को दूर करने में अपने जीवन की आहुति करने वाले बहुत ही थोडे होते हैं। महात्मा लोग कहते है कि अपनी शक्ति के अनुसार तुम दूमरों का मदद क्रो, तुझें अगर मदद की जरूरत होगी तो तुम में विशेष शक्तिमाले तुझारी मदद करेंगे। न तो तुम पूर्ण हो और न इच्छाओं या आवश्यक्ता आ मे रहित हो, इसलिये दूमरों की इन्छाए या आवश्यक्ताए तुम पूरी करो। तुह्मारी आवश्यक्ताए और इच्छाए भी पूरी की जायेगी। मनुष्यों को यह विचार करना चाहिये कि हमारे पास इतने माधन नहीं है कि हम दुमरों की सहायता कर सकें । तुझारे पास जितनी शक्ति या सायन हैं उनमें थोडासा अश भी तुम दूमरों की सहायता के लिये खर्च करो। जिमको तुमसे भी हुत ज्यादा जरूरत

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