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३३ शुभनामकर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर के अनयय सुदर हो ।
३४ सौभाग्यनामकर्म किये कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से दूसरे जीव अपने ऊपर विना कारण प्रीति करें ।
किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय मे स्वर अच्छा हो ।
३५ सुस्वरनाम
३६ आदेयनामकर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से जीव का वचन सर्वमान्य हो ।
३७ यशोकीर्तिनामकर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से ससार मे यश और कीर्ति फैले ( एक दिशा में प्रशसा फैले उसे कीर्ति कहते हैं और सब दिशाओ में प्रशसा फैले उसे यश कहते हैं ) ।
इस प्रकार पुण्य प्रकृति के उदय मे ३७ प्रकृतियाँ नाम की जीव बाधता है और फिर उसी प्रकार उन शुभ प्रकृतियों के फलों का अनुभव करता है ।
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गोत्रकर्म की केवल एक ही प्रकृति पुण्य प्रकृति के उदय सेनाघी जाती है। जैसे कि उच्च गोल । इस प्रकार, आत्मा नौ प्रकार मे पुण्य प्रकृतियों को बाधकर पूर्वाक लिसे हुए ४२ प्रकार के उनके फलो का अनुभव करता है ।
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