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२ विचार - जन प्रत्येक कार्य विवेकपूर्वक होने लगता म सदैव काल विचार ने आश्रित रहने लग जाता
है तब
है कारण कि इन दोनों का विचार परस्पर अविनाभावी सन्ध विवेक विचार के आश्रित और विचार विवेक
है जैस क क आश्रित रहता है |
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जिस प्रकार विवेक पूर्वक एक शुद्ध वाक्य उच्चारण किये जाने पर तर विचार से निश्चित होता है जिस प्रकार के वाक्य हम प्रयोग करेगे उसी प्रकार का प्रत्याघात हमारे सन्मुस उपस्थित हो जायगा ।
इसी प्रकार जन हम किसी व्यक्ति को कटुक और स्नेह रहित वाक्य का प्रयोग करेंगे तत्र वह व्यक्ति उससे कई गुणा दो निष्ठुर और परम दारुण इतना ही नहीं किंतु मर्म
IT वर्णेन्द्रिय को असहनीय वाक्यों का प्रहार करने लग जाता है मो इस कथन से यह बात भली प्रकार से सिद्ध हो जाती है कि जिस प्रकार का हम लोगों के साथ वचन का व्यवहार करते हैं उसके प्रतिरूप में हमें उसी प्रकार के वचनों के सुनने का अवसर प्राप्त हो जाता है।
सो उक्त विचार से हम को भली प्रकार से निश्चित हा जाता है कि हमें वचन विवेक पूर्वक उच्चारण करना चाहिये क्योकि जो कार्य विचार वा विवेक पूर्वक किया जाता है यदि वह सर्वथा सफलता प्राप्त न पर ये तो वह हानि भी नहीं
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