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| पति होते हैं । अतएवे किसी कारण के उपस्थित होजाने पर का चित्र वा पुरुष निक्र्य ये कार्य न करने चाहिये । बहुन से कार्य धर्म विरुद्ध होते हुए भी देश विरुद्ध होते। परन्तु यह उक्त कार्य धर्म और देश तथा जाति यदि सभी के विरुद्ध है । इसलिये मुज्ञ पुम्पी को इन या कासनाति से बहिष्कार कर देना चाहिये ।
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off see प्रकार उक्त कार्य सर्व प्रकार की हानि करने वाले बतलाये गए हैं, ठीक उसी प्रकार व्यर्थ o भी हानि करनेवाला कथन किया गया है । परन्तु प्रश्न यह उपस्थित होता है कि व्यर्थ व्यय किसे कहते हैं ? इस कार की शक् के उत्तर में कहा जानी है कि "क्षेत्र व विविध धर्मपान कार्य पात्र काम पात्र चति'
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पा' तीन प्रकार से कहा जाता है जैसे कि, धर्म पार्न, कार्य पान और काम पान । सो स्वर्ग और मोक्ष के लिये धर्म पात्र कंथन किया गया है । इस लोक की आशा पूर्ति करने के लिये
पान दान माना गया है और काम सेवन की वृद्धि के लिये काम पात्र कंथन किया गया है। जैसे श्री आदि की श्री। तीनों पात्रों के अतिरिक्त व्यय किया जावे तो वह व्यर्थ व्ययं कथंत किया गया है जैसे कि, वैश्यानृत्य, भाड
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great का अवलोक्न इत्यादि स्थानों में धन व्यय करना व्यर्थं व्यय माना गया है क्योंकि जिस प्रकार
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