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१६७ है ठीक उसी प्रकार नियमों के पथपर भी मर्य गणवामी चलत रहते हैं । परन्तु क्मिी वल या मद के आश्रित होकर उन नियमों के पालन करने की परवाह न करना तथा उन नियमों को छेन्न भेदन करदेना यह योग्यता का लक्षण नहीं है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को योग्य है कि वह देश काल का टीक ज्ञान रसते हुए व्यय के घटाने की चेष्टाए करते रहें। तथा उन नियमों के छिन्न भिन्न करने की चेष्टाए कदापि न करें। तथा यह गत भली प्रकार से मानी हुई है कि जो पदार्थ परिणाम पूर्वक सेवन किये जाते हैं वे किसी मार की बाधाए उपस्थित नहीं करते । किंतु जो परिणाम से बाहिर सेवन करने म आते हैं वे पिसी प्रकार से भी मुसपद नहीं माने जासक्ते । जिस प्रकार प्ण काल मे परिणाम से सपन किया हुआ जल, आयु का मरक्षक होता है ठीक उसी प्रकार परिणाम मे अधिक सेवन क्यिा हुआ आयु के श्रा का कारण बन जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक पाक विपयं में जानना चाहिये।' व्यर्थ व्यय उसी का वास्तव म नाम है जो सासारिक लिहि या वार्मिक कार्यों की सिद्धि के विना किया जाय ।
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यदि ऐसा कहा जाय कि जर हेमा रानि के समय नृत्यादि को देखते हैं तो क्या उनके देखने से हमारी का सिद्धि नहीं हुई है। अवश्य हुई है। क्योंकि जोगी