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कन्या अपने यौवन के पथ पर पाद ( पग ) रसने लगती है दव वह वृद्ध अपनी परलोक यात्रा के लिये प्रस्तुत होने लगता ६ । सके पश्चात् जो उस कन्या की वा युवती की दशा होती है यह मत्र के समक्ष है इसलिये उसके दिग्दर्शन इराने की आवश्यक्ता प्रतीत नहीं होती।
अतएव प्रत्येक जाति से पृद्ध विवाह का बहिष्कार किया आना चाहिये।
पन्या विनायः-जिस प्रकार वृद्ध वियाह धर्म, जाति या रेश की हानि करने याला घतलाया गया है ठीक उमा प्रकार कन्या निन्य कृत्य मी हानि कारक क्थन दिया गया है।
जो लोग महा लालची हैं वे लोभ के पशीभूत होकर अपनी प्यारी पन्यानो को बेचकर अयोग्य व्यक्तियों को समर्पण कर देते हैं जिससे उन बालिकाओं को फिर नाना मनार के कष्टों का सामना करना पडता है कारण कि अयोग्य व्यक्तिया समझती है कि हमने यह पदार्थ मोल लिया है, इसलिये जिम प्रकार हम चाहे इसके माथ बर्ताव कर सत्ते हैं।
सो इसी आशा से प्रेरित होकर फिर वे उन बालिकाओं के साथ राक्षमी व पैशाचयी व्यवहार करने लग जाते हैं