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परतु जो दोना मागों का उलंघन कर चरते हैं उह कुप्रथाए, वा फुमार्गगामी कहा जाता है जैसे कि ---
वृद्ध-विवाहः-गृहस्थाश्रमयाले आत्मा गृहम्यावासमें नियास करते हुए विवाह आदि सरसार किया ही करते हैं। किंतु जो अनुचित या व्यवस्था से विपरीत वृद्ध विवाहादि होते हैं वे गहस्थाश्रम के विध्यमक माने जात है क्योंकि उनके द्वारा जो २ विपत्तियाँ घुल म उप्तन्न होती हैं ये लोग की दृष्टी से बाहिर नहीं है । तथा समभाव द्वारा यदि विचार पर देखा जाय कि जिम प्रकार एक साठ ' यीय घर (वृद्ध ) दश वर्षीय कुमारी के साथ वेद मम्री द्वारा विवाह पर प्रसन्न होता है यदि इसके विपरीत साठ वर्षीय पुढिया एक दा वर्षीय कुमार के माथ विवाह करे तो क्या वह अपने मन में प्रसन्न न होगी? जिम प्रकार उस बुढिया ये विवाह का लोग उपहाम करने लगेंगे तो क्या रोग उम वृद्ध ये विवाह का उपहास नहीं करगे ? अतएव युद्धविवाह जाति, पुल व धर्म : का विधमा है और व्यभिचार के मार्ग को सोरने वाल है, इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को इमया प्रतिवाद करना चाहिये।
इसी प्रकार जाति धर्म के नियमावली म इमफे विरोध के लिये दण्ड नियत कर देना चाहिये जिसमे इसका प्रत्येक गण (बिरादरी ) से यहिष्कार किया जा सके । क्योंकि जब