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यदि वह धूम शटी स्वगमन स्थान से स्पलित हो ___ अर तर यह अपनी वा जो उसपर, आम्द हो रहे हैं उन
मुवों की हानि करने की कारणीभूत बन जाती है। इसी प्रकार जो व्यक्ति कुमार्गगामी 'होता है वह अपना या उसके अनुकरण करने वालों का समका नाश करने का कारणभूत हो नाना है। क्योंकि कुमार्ग उसी का नाम है जिसपर चलने ममय अनेक विपत्तियों का सामना करना पड़े । अन्त में विपत्तियों में फसकर विपत्तिरूप ही होना पडे ।
मुमार्ग उसी को कहते हैं कि जिसपर सुसपूर्पक गमन उरत हुए अभीष्ट स्थान पर पहुंचा जाय । ठीक इसी प्रकार आत्मा भी मुमार्ग पर चलता हुआ स्वकीय अभीष्ट स्थान निर्वाण होजाता है।
__ अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि मनुष्यों के सुमार्ग या कुमार्ग 'कौन २ से हैं जिन्हो पर चलने में आत्मा सुस या दु सौ का ठीक २ अनुभर फर सक्ता है और किम प्रकार आमा आत्म-विकास कर सकता है।
इस प्रकार की शकाओं का समाधान इस प्रकार से किया जाता है कि जिस प्रकार साधुत्ति में उत्सर्ग वा अपवाद मार्ग कथन किये गए हैं और उक्त दोनों मागों के
होकर साधु अपना मल्याण कर सक्त हैं ठीक उसी गहस्था के प्रतों में भी उक्त दोनो मार्ग लागू पडते हैं