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१६४ परन्तु वे घालिया निश्चित अपने आपको समझती हुई उन पैशाचरी यहारों को सहन किये जाती है निसा परिणाम धर्म या जाति अभ्युदय पे लिये अत्यत याधा जनर देखा जाता है । अतण्य दया-धर्म के मानने वारों को योग्य है कि इस अत्याचार को अपने : गण से गाहिर करने की चेष्टाए करे । क्योंकि निरादरी पे मुखिया इमरिये होते हैं कि यदि कोई व्यक्ति स्वच्छता पूर्वक कोई काम करने लगे तो उमका प्रतियाद करते हुए उमो शिथित करें।
जय गण के स्थपिर इस ओर लक्ष्य ही न दें नो मला पिर गणोन्नति या जाति सेयो तथा जाति रक्षा किम प्रकार रह सत्ती है ?
, आवश्यक सून घे गृहस्थ ७ ये प्रत में , " के वाणिज्य" के पाठ से श्री भगवान ने इस कृत्य को धमोदान के नाम से घतलाकर इसके छोडने का उपदेश दिया है । सो क्न्यी विषय से जो २ दोष दृष्टिगोचर होते है वे सब के सामने हैं । इसलिये इस कृत्य को मर्वथा छोड
देना चाहिये।
पुरुप विक्रय-जिम प्रकार कन्या विश्य महा पापजन्य कृत्य है ठीक उसी प्रकार बालक विक्रय या पुरुप विक्रय भी पापजन्य कृत्य है क्योंकि जिन दोषों की प्राप्ति कन्या विनय से होती है वहीं दोप पुरुष विनय में भी