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यद्यपि शिकार ( आसेट ) शब्द बनचारी जीवों के ही लोक रुदि म व्यवहृत होता है किंतु किसी भी जीव क प्राणों का उच्छेन्न करना इसी कर्म में गिना जाता है ।
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अतएव सिद्ध हुआ कि शिकार न सेलना चाहिये |
४ मद्य मदिरा पान करना भी अयोग्य कथन किया गया है क्या यावन्मात्र मादक द्रव्य हैं वे सब मबुद्धि के विध्वस के हतु ही माने जाते हैं । अतएव मुयोग्य व्यक्तियों को योग्य है कि वे मानक द्रव्यों का कदापि सेवन न करें ।
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मंदिरा पान के दोष लोक में सुप्रसिद्ध ही हैं । भाग चरस, नमाखू, सिगरेट सिगार आदि यावन्मान तमोगुणी पदार्थ हैं न सेवन करना दोनों लोक मे दु खप्रद माना गया है । क्योंकि इस लोक में इन के सेवन से धन का नाश तथा उपचार की प्रवृत्ति देखी जाती है और परलोक में निकृष्ट कमों का फल दु खप्रद होता ही है ।
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अतएव यावन्मान तमोगुणी और मादक द्रव्य हैं उनका विनापि न करना चाहिये ।
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५ वेश्या - जिस प्रकार जगत में मादक द्रव्य हानि करते दिखाई देते है ठीक उसी प्रकार वेश्या सग भी इसे डोक से में दु समद माना गया है।