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पासादि । क्याकि इनके सेलने से समय तो व्यतीत अत्यत
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हानाता है परंतु लाभ कुछ नहीं होता ।
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मास - निन पदार्थों के साने, से निर्दयता बढ़ती हो और अनाथ प्राणि अपने प्रिय प्राणों से हाथ धो बैठते हो इस प्रकार के पदार्थ भक्षण न करने चाहिये ।
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क्योंकि यह बात भली प्रकारसे मानी हुई है कि मासा'हारी को दया कहा है ? ' तथा मासाहार रोगों की वृद्धि भी
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करता है और न यह (मासाहार) मनुष्य का आहार ही है ।
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"क्या जो पशु मामाहारी हैं और जो पशु घासाहारी
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हैं तथा पशु मनुष्य के शरीरावी आकृतियों में विभिन्नता प्रत्यथ दिलाई पडती है । सो मास का आहार कदापि न करना
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चाहिये ।
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३ शिकार निरपराधी जीनो को मारते फिरते रहना क्या योग्यता का लक्षण है ? कदापि नहीं । इसलिये शिकार न सेलना' चाहिये । ' इतना ही नहीं हासी या कौतुहल के बीभूत होकर भी किसी जीव के प्राण न छीनने चाहिये ।
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पुत्र - रिवाजी | जो अपने वस्त्रो या केशों में जू आदि जीव
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पड जाते हैं तो क्या उनको भी न मारा चाहिये 2
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पिता पुत्र
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। उनको भी न मारना चाहिये ।
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