________________
• न हो जाये उसी प्रकार यर्तना पाहिये । विवादद।
के समय जो घर और कन्याओ की परस्पर प्रतिज्ञाए की जाती हैं उन प्रतिज्ञाओं की सावधानता, पूर्वक पालन करना चाहिये। साथ मैं इस बात का, भी विशेष ध्यान रक्सा जाय कि जप में स्वधर्मपत्री, को कदाचार से बचने की विपेश चेष्टाए करता, रहता है तो फिर मुझे भी उस कदाचार से पृथक रहना चाहिये क्यिोंकि जब मेरा' सदाचार टीई होगा सप उसका प्रभाव मेरी धर्मपत्री पर
अवश्यमेव पडेगा। । । ।
अतएव निष्कर्ष यह निकला कि स्वधर्मपत्नी के साथ मयादा या प्रमाण पूर्वक ही वर्तना चाहिये । तथा जिस प्रकार परस्पर देश वा स्वच्छता न घढने पाय उसी प्रकार पवना पाहिये।
पुत्र-पिताजी ! मतती के साथ किस प्रकार बना चाहिये।
पिता -मेरे परम प्रिय पत्र। अपनी सतति के माध प्रम
वर्तना चाहिये। परतु इस बात का ध्यान अवश्य मेय रक्या जाय कि जिस प्रकार अपनी भतरि फदाचार में प्रविष्ठ न होजाय उसी प्रकार मुझ पुरुष पो उनके साथ पर्तना योग्य है। परतु अपने पिर पुर या कन्याआ को कभी भूलकर भी गाली,