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स्वदेशी वैपादि द्वारा मुरुं पूर्वक निर्वाह करते हुए
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गृहस्थाश्रम के मुख पूर्वक जास हैं
नियम पालन किये
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पुत्र - पितानी । डक तीनों के अर्थ मुझे समझा दीजिये 1
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पिता – पुन | ध्यान देकर मुन ।' हे मेरे परमं प्रिंय पुन
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जिस देश के जल, वायु और पदार्थों के प्रयोग से शरीर की उत्पत्ति होती है फिर प्राय उसी देश के स्वच्छ परायों ये सेवन (आहार) से शरीर की
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'सौंदर्य' तथा ' ले की वृद्धि सुखकर होती इसलिये स्वदेशी' पदाथों के आहार से अपने शरीर 'की रक्षा करनी चाहिये । साथ ही ' जिन पदार्थों के • आसेवन से क्षण मान तो मुल प्रतीत होने लगे
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परन्तु उनका अंतिम परिणाम हितकर न होवे तो वे पदार्थ स्वदेश में उत्पन्न होने पर भी सेवन के योग्य "नहीं है । जैसे कि उष्ण काल मे बहुत से लोग • पानी के बर्फ का सेवन करते हैं सो इसका सेवन दोनों प्रकार से अयोग्य प्रतीत होता है जैसे - जन धर्मशात्रों के नियमों की ओर विचार किया जाय तब भी इसका सेवन करना योग्य प्रतीत नहीं होता क्योंकि धर्मशास्त्र जल को ही जीव मानता है। जन जल का पिंड सेवन किया गया तन तो
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विशेष हिंसा वा कारण बनगया इसलिये इसका सेवन करना योग्य नहीं है ।
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