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१३७ अपश- मुस से निकालने या किसी प्रकार से भी क्रोध का परित्याग न करना इत्यादि क्रियाएँ बालकों को कदापि नहीं करनी चाहिये।
क्योंकि इस प्रकार का स्वभाव यदि पड जायगा तब यह आयुभर में भी नहीं जा सकेगा।
साथ ही बालको को योग्य है कि चे माता पिता आदि के सामने कापि मिश्याग्रह से वस्तु की प्राप्ति करने की चेष्टाएँ न कर और साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि जब प्रये पदार्प माने योग्य अपने घर से उपलब्ध हो सकता है - नो फिर क्यों नानादि से लाकर खाने कासभाव डाले। क्योंकि
प्राय देना जाता है कि पाजागदि के पके हुए पदार्थ घृतानि - की गुद्धि न होने के कारण मे रोगादि की उत्पत्ति का कारण बन जाते हैं जिसमे एक यार का बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य बहुत चिरकाल के पश्चात् ठीक होने का कारण बन जाता है । ___ तर बाजारादि का खाने का स्वभाव हट जायगा तब व्यर्थ व्यय और व्यभिचारादि बहुत से कुकृत्यों से भी बचने
का सौभाग्य प्राप्त होजायगा । - पुत्र-पिताजी | यह तो आपने मदाचार के इहलौकिक के
नियम बनलाये हैं जिनके पालने से प्राय शारीरिक दशा ठीक रह सती है।, अन आप उन नियमां-की