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उनके मुख
क्योंकि इस प्रकार की क्रियाए करते हुए जो आशिर्वाद के उदार निकलते हैं वे उन बाल्का को अत्यत सुखप्रद होते हैं।
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तदनु सन प्रकार की कायिक चेप्टाए जो की जाय व सन विनय पूवर्क वा यत्र पूर्वक होनी चाहिये । जन काया शुद्धि air state a fफर वालको को वागशुद्धि भी करना चाहिये। जैसे कि कभी भी मुस से गाली न निकालनी चाहिये क्योंकि गाली के निकालने से एकतो अपना मुस अपवित्र होता है दूसरे जो उस गाली को सुनते हैं वे इस प्रकार के अपने अन्तकरण से भाव उत्पन्न करते हैं जो उस tree लिये सुप्रद नहीं होते ।
इसलिये जय बोलने का समय उपस्थित हो जाय तन मधुर भाषी ननना चाहिये ।
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तथा यह बात भली प्रकार से मानी हुई है कि स्नेह और प्राप्ति पूर्वक भाषण किया हुआ शब्द प्रत्येक व्यक्ति को या करने में मांगता रसता है ।
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तथा मधुर भाषी बालक में प्रत्येक व्यक्ति प्रेम दृष्टि धारण कर लेता है, इतना ही नहीकिंतु उस बालक की रक्षा करने में टिन होजाता है ।