________________
- १३३
कि जन उनसे उनकी इच्छानुसार धन का लाभ मिलता रहता है तन उस धन के भोगने के लिये उसके मिगण भी ura होना है जिसने फिर मित्र मंडली उमी को दुष्टाचार
म लगा देती है ।
इसलिये परिमाण से अधिक बालको को खरच देना लाभ के स्थान पर एक प्रकार की हानि का कारण बन जाता है ।
दिवायें |
}
हा, यह प्रात भी अवश्य विचारणीय है कि यदि सर्वथा हा उन बालको को कुछ भी न दिया जाय तन भी वे वाक Fदाचार में प्रविष्ट होजायेंगे क्योंकि जब उनको उनकी आवश्यवीय आवश्यकतानुसार तो सरच घर मे उपलब्ध होता ही नहीं वे अपने मित्रों से मरच लेने की चेष्टा करेंगे जिससे फिर वे प्रसगानुसार वा अपनी आवश्यक्ता पूरी करने के लिने अवश्य कुमार्ग में प्रविष्ट होजायेंगे तथा कुभंग म फस हुए फिर से सर्वथा माता पिता की आज्ञा में ही वाहिर
३"
f
1
1
.
इसलिये पिताओं को योग्य है कि वे अपने प्रिय पुत्रों
की यथोक्त रीति से पालना करें जिसमे उनकी आवश्यकीय आता तो पूरी होती रहें और सत्यचार वा विद्याकी
.
वृद्धी भी होती रहे.
t