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भक्ति से अपने जीवन को मपर बनाने की चेष्टा करेंगे। __ मो इससे सिद्ध हुआ कि वास्तव म तुह्मारा आत्मा ही
नुहारा मिन है।
तिम प्रकार आत्मा को मित्र माना गया है, ठीक उसी प्रार आत्मा यदि सनाचार व सदधिनता से विभूषित न क्यिा तो यही आत्मा अमिनरूप नकर दु यप्रत होजाता
। सो इससे सत ही सिद्ध होगया कि वास्तव में मिन या अमित्र आत्मा ही है। इसलिये ममत्वभान को मईया छोडकर करल निर्भमत्लभार के आश्रित होकर आत्मान्वेषी नन जाना चाहिये।
तथा इस बात का भी पुन चितवन करते रहना चाहिये मि अनतवार उम जात्मा ने स्वर्गीय मुग्मों का अनुभव क्यिा है किंतु फिर भी इसकी नागा शात न हुई तो भला इन वर्तमान कालीन सुद्र सुखों से क्या इस आत्मा की तप्गा मात हो जायगी? कापि नहीं। तथा अपन जीवन की दशापर प्रत्येक व्यक्ति को नप्टी डालनी चाहिये कि मेरे जीवन म सु ग्यप्रद या दुसमन क्तिने प्रकार की घटना हो चुकी हैं तो में किन • घटनाओं पर ममत्व भार कम् ?
जय वे घटना स्थिर रूप से न रह सकी तो फिर मेरा उन घटनाओ पर ममत्वभाव करना मेरी मूर्खता का ही सूचक है। प्राय तीन पायो पर किया जाता