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पाठ ग्यारहवाँ। पिता पुत्र का संवाद।
पुत्रा--पिताजी । पुत्र के प्रति पिताजी का क्या कर्तव्य है १
पिता- मेरे परम प्रिय पुन पिता या पुर के प्रति यह
कर्तव्य है कि वह पुग की यथोक्त रिधि म रक्षा करें।
पुत्र - पूज्य पिताजी ' यथोक्त विधि में रक्षा किसे कहते " है ? मैं इसे समझ नहीं सत्ता।
पिता-- मेरे प्यारे मुनु । जिस प्रकार शास्त्री ने पुत्र पारने
के नियम प्रतिपादन क्यि है ठीक उन्हीं नियमा के द्वारा पिताओं का कर्तव्य है कि वे अपने पुत्रों
की पालना या रक्षा करें। पुत्र'-पिताजी ! शाखा ने कौन से नियम पुन पालने
वा रक्षा करने के प्रतिपादन किये हैं। क्योंकि मैं उन नियमो को सुनना चाहता है।
पिता-पुत्र शास्त्री ने दो प्रकार के नियम प्रतिपादन
किये हैं जैसे कि ----मुग्व्य और गौण किंतु गोक से कहना पड़ता है कि जो मुग्य गुण थे वे तो.
रूप में आगार हैं और जो गौणता
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