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अनण्य स्मृनि ररना चायि कि अपतप आत्मा त Pारा अपरम्पान नहीं पता तयना सा आमविकास भी नहीं हामका । नय आत्मयिाम न आ गय उम आत्मा का नियाण पर की प्रामि मि प्रकार मानी जा मार्ग है । सो हम क्या में यह सिद्ध हुआ कि आत्मविकास परोयलिय स्थायरम्या अपश्यमेव होना धारिये । कयाकि पिन • सुम्यों का आन- दृष्टा अभय पर मगा उन २ मुम्पा के आत भाग मात्र मी समारी आरमा मुग्मों का अनुमय नहीं कर साहे । क्यामि जो गूय का स्वाभाविक प्रकाश उमरे मामा सहमा दीपयों का प्रकारा भी नहीं हा सप्ता। क्योकि या प्रकार कृषिम है और मोपाधिक है। सूर्य का प्रयाा स्पाभाविक और निरुपाधिक है। ___अत गुभ भाषना और यात समाधि द्वारा आत्म विकास करना चाहिये जिमसे आत्मा का अभय मुख . अनुभव करने का मौभाग्य प्राप्त हो जाये।
वास्तव म जिन आत्माओंने आत्मा को ही ध्येय धना लिया हे घे आत्मा अपनी श्यिाओं में मृतकृत्य फिर, निर्वाण पद की प्राप्ति कर गई है। इसी प्रकार अन्य आत्मा
ओं को भी उनका अनुकरण करना चाहिये जिसमें में निर्याण पद की प्राप्ति करने में गमर्थ यन सर्प ।