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इसी प्रकार प्रत्येक गैरनेवाले पदार्थों के विषय में विचार करना चाहिये तथा नाभि आत्मा स्वकायमुख मल ( सुमार ) को अपनी मिति निधारों आदि पर वा दुकान के आगे ही गेर देते है
प्रत्येव आमी का हो जाय तो
पदार्थों
घृणा आती है और यदि जीव हिंसा भी हो जाती है इसलिये उपरोन विचार से न होनी चाहिये ।
प्रिया दिना
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से उस कथन से स्वत हो नि हो जाता है कि प्रत्येक रिया के करते समय विचार की सत्य आवश्यता है ।
ने शाति -जय विचार पूर्वक क्रिया होन प जाती है तन मा की भी अत्यंत आवश्यता रहती है क्योंकि विना क्षमा के धारण किये fare और विचार ये होना ही निक हो जाते हैं
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शातिपूर्वक हीfree और विचार ठीक रह स
है
क्योकि जय आत्म प्रदेश शानदान ही शुभ भावना उपश्न हो सक्ती है । यदि आत्म प्रदेश अज्ञात दशा में होते हैं To free और विचार भी अपना काम ठीक नहीं कर मक्ते । जय कि त्रोधी आत्मा अपने नाश करने में भी विलम्ब नहीं करना चाहता तो भला फिर यह विवेक और विचार से क्यो काम ले सा है ?