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आत्मा सम्यग्दर्शनादि के द्वारा ठपयों का अनुभव कर सका है।
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अत प्रत्यक व्यक्ति को योग्य है कि यह साधन द्वारा साध्य की प्राति परे वा उसकी सोज करे ।
पाठ दसवां ।
आत्मानुप्रेक्षा ।
प्रिय सुत जनों । यावत्काल पर्यंत आत्मा स्वानुभव नहीं मरता साला पर्यंत आत्मा आत्मिक सुखों से वचित ही रहता है। क्योंकि संसार में देखा जाता है कि प्रत्येक आत्मा सुसान्वेषी हो रहा है परंतु उस अन्वेषण के मार्ग भित्र २ दिखाई पड़ते हैं। जैसे कि किसी आत्माने धन की प्राप्ति में ही सुरा माप रक्सा है और किमी
ture
मा हुआ है।
साहसी आत्मा ने पुत्रोत्स में ही सुरा माना हुआ यादी २ आत्मा ने अपनी
में मुख उक्त
नमन रक्ता है । गरि विचार पर
के अन्वेषण वज
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क्योंकि उ इच्छानुकूल सुख
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