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उत्तर-हा। किसी विशिष्टतर भावों की उत्कर्पता के __ कारण से पापरूप प्रकृतियाँ पुण्यरूप फल के देने में समर्थ
हो सकी हैं। मन-इसमे कोई प्रमाण दो। उतर:- इसमें प्रमाण तो केवल भावों की उत्कर्पता ही है।
परतु जिस प्रकार पुण्यरूप प्रकृतियों को भावों से विपरिणमन आत्मा कर सकता है इसी प्रकार पापरूप प्रकृतियों को भी शुभ भावों से पुण्यरूप कर सकता है।
जिस प्रकार दुग्ध से दधि यनाया जाता है फिर युक्ति __ से सी दधि से नवनीत निकाला जासक्ता है ।
फिर उसी नवनीत से पत बन जाता है । क्रमश अनेक पदार्थों का उस धृत में संस्कार किया जाता है ।
ठीक तद्वत् शुभ भावनाओ द्वारा शुभ अशुभ प्रकृतिया का विपरिणमन किया जा सत्ता है।
इस याते प्रत्येक व्यारी को योग्य है कि यह शुभ मनोयोग द्वारा प्रत्येक पदार्थ पर विचार करता रहे जिससे ज्ञान वा पुण्य प्रकृतियों का बध ये दोनों लाभ आत्मा को उपल ध होते रहें। ___ क्योंकि धर्म-नियाओं के करते समय ये पुण्य प्रकृतियाँ फिर करण ( साधन ) का काम दे सती हैं।