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तथा जिस प्रकार अमि और पानी का यथावत्
है तो
मिल जाने पर भी यदि भूगादि में कोकड आदि ये उपयोग में मिल जाने पर भी अपने स्वभाव को नहीं छोडते । ठीक उसी प्रकार यदि अभय आत्माओं को सम्यगतया कारादि का योग भी उप हो जावे ठो फिर भी वे स्वस्वभाव मोय साधन का न होने से मोम के माधक नहीं वन सरे ।
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तृतीय जीव सक्षक पारिणामिक द्रव्य है जैसे कि मुक्त आत्मा । क्योंकि मुतात्माओं को भव्य सक्षक भी नहीं पह मते क्योंकि भव्य मुक्ति जाने वाले आत्मा पी सज्ञा हूँ सो ये तो निर्माण प्राप्त कर चुके हैं अत ये भन्या तो कहे नहीं जाते ।
तथा नहीं ये अभव्य सक्षक क्योंकि अभव्य ये है जो मुक्ति गमन की योग्यता ही नहीं रखते । अतण्ष अभव्य मशक भी नहीं है जब दोनों सशाओं से ये ET Fire तब उनकी केवल जवि सक्षा ही बनी रही ।
सो इस कथन का निष्कर्ष यह निक् किमों क होने से ही इस आत्मा के उपाधि क्षेत्र धारण से इस आत्मा की अनेक प्रकार व्यारया की जासकी है।
परंतु स्मृति रहे बलवीर्य यह आत्मा वा निज गुण है इसलिये इसकी अपेक्षा मे द्रव्यात्मा को वीर्यात्मा भी कहा