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गुहा के दान से या जो पर्वतो मे गृह होते हैं. उनके दान करने से ३ ( सयण पुण्णे) शग्या के (वसति आनि) के दान से ४ (वत्थ पुण्णे) वस्त्र के दान मे ५ (मण पुण्णे ) मन की शुम प्रति से ६ (यण पुण्णे ) शुभं वचन के योग प्रवर्नाने से ७ ( काय पुण्णे ) पाप कर्म से काया का निरोध करने स
८ ( नमोकार पुण्णे ) नमसार करने से। इन नौ कारणों मे आत्मा पुण्य कम मा मचय कर देवा हे कारण कि जर किमी प्राणी पर अनुगम्पा के भाव अन्न होते हैं तर आत्मा उक्त क्रियाओं के करने में प्रवृत होता है और फिर उन्हीं शुभ भागों से पुण्य रूप परमाणुओं का सवय किया जाता है।
जिम प्रकार कोई आत्मा शात चित्त मे कार्तिक "शुष्ठ भागामामी के चन्द्र को देखता हो तथा प्रान काल में वर्षा पहनाने के पश्चात पुष्प वाटिका मे पुष्पों की सौंदर्यता को देखना हो तर उसके आत्मा में शातमय परमाणुओं का सवार हो जाने से मन और चक्षुओंके परम प्रसन्नता हो आती है। ठीक उसी प्रकार पुण्य कर्म के परमाणुओं का भारम प्रदेगा के माथ जय और नीयन् सम्बन्ध हो जाता है अब उन परमाणुओं का मचय लब उदय भार में आता ३.१५ आत्मा को ससार पक्ष में पवित्र बनाकर उसे जनता
में मनिष्ठिन व हवे हैं।
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