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પત્ર
यम से यह जीन वर्मों के कारण से प्रकार की
गतियों में परिभ्रमण कर रहा है।
जिसकार या अभिपी नारकिया द्रव्य का अभिलाषी होकर जाना प्रकार पे नाच (मेल) करता है ठीक उसी प्रकार जीव भी नामापि अभिलाषी होकर नाना प्रकार के कर्म करना है। फिर उन्हीं कमों के पोर नाना प्रकार की योनियों में परिभ्रमण करने लग जाता है।
होगया।
कारण कि धर्म तो इसलिये दिये थे कि मुझे मुख हो जायगा परन्तु उन्हीं मों ने मार से जीव को जया कि उसका अब छूटना ही कठिन विसवे धारण से जीव यो नाना प्रकार के सामना करना पडा और पाना प्रकार की गतियों में गमना गम करना पडा ।
का
प्रश्न
प्रश्न गतिय क्तिन प्रकार से घिर्णन की गइ हैं ?
उत्तर - घर प्रकार से ।
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नमी है ?
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उत्तर -नरव गति, तिरंग् गति, मनुष्य गति, और
देव गति |