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होजाता है । सो इसी प्रकार जय ज्ञान को करण साधन माना जायगा तब उसमें भी उक्तही दोषापत्ति आजायगी। अतएव ज्ञान पो करणं
साधन मानना भी युक्ति युक्त नहीं है। इस शका का समाधान इस प्रकार किया जाता है कि -
शान को करण साधन मानना युक्तियुक्त है क्योंकि शास्त्रम कारण दो प्रकार से माना गया है जैसे कि . एक पाह्य करण और द्वितीय अतरग रण सो जो बाह्य करण होता है वह तो कर्ता की क्रिया को समाप्ति हो जाने पर कर्ता से पृथक हो ही जाता है जैसे पशु को ही मानलो परतु जो आभ्यन्तरिक करण होता है यह कता की शिया में सहायक पनकर भी कर्ता से पृथक नहीं होता। किसी पुरुषने कहा f "अमुफ पदार्थ मैने अपनी आखों से देखा है" इस पाक्य में आ करण बन गई है सो यह आस पदाथ में से जाने के पश्चात पर्ना से पृथक नहीं होती तथा किसीने यह कहा कि " मैं अमुक वस्तु को मनमे जानता हू" सो इस कथन से वस्तु के जानने म मन करण यनगया है परतु जब वस्तु फा धोध होगया तो फिर कर्ता से मन पृथक भी नहीं होमला तथा किसीने कहा कि " ज्ञान से आत्मा जाना जाता है" सो इस कथन से आत्मद्रव्य जानने के लिये ज्ञान करण क्थन किया गया है सो जब ज्ञान द्वारा आत्मद्रव्य को जान