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प्राप्त हो जाता है। जिससे उसकी पाप वृत्तिया विशेप बढ़ जाती हैं। जैसे कि क्रोध मान माया और लोभ, राग न्देप, क्लेश, निंदा, चुगली और छल, झूट इत्यादि वृत्तियों के बढ जाने से फिर वह जीव अपनी उन्नति के स्थानपर अननति कर वे । अतएर तमोगुणी या रजोगुणी भोजन सद्गृहस्थों को कदापि न करना चाहिये।
अब प्रश्र यह उपस्थित होता है कि सतोगुणी वा रजोगुणी या तमोगुणी भोजन की परिक्षा क्या है ? इस शका के ममाधान में कहा जाता है कि स्वच्छ, शुद्ध और मन या इद्रियों को प्रसन्न करने वाला प्राय स्निग्ध और उष्ण गुणों से युक्त जैसे मर्यादानुकुल और शीघ्र पाचक गुणपाला वा घृतादि का भेषन है इरो सतोगुणी भोजन कहा जाता है। परतु चरित रस अस्वच्छ और अशुद्ध, अत्यत तीक्ष्णादि गुणों से युक्त वा गीत रक्षादि गुणों से युक्त इत्यादि भोजन तमोगुणी होता है। दोनों की मध्यम वृत्ति वाला भोजन रजोगुणी होता है । इसमें कोई भी सदेह नहीं है कि जिस प्रकार प्राय अमदपुरुप दूसरे की निंदा और चुगली आदि श्यिाआ के करने से बड़े प्रसन्न होते हैं उसी प्रकार रजोगुणी भोजन वा तमोगुणी भोजन करते समय तो बड़ा प्रिय लगता है परतु जिस प्रकार निंदादि कियाओं का अतिम फल दुस-प्रद ही निकलता है ठीक उमी प्रकार तमोगुणी या
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