________________
५७
तथा लौकिक में यावन्मांत्र शुभ कृत्य माने जाते हैं वे । भी रात्रि को नहीं किये जाते जैसे श्राद्धादि कृत्य । अतएव .. रात्रि भोजन से सदैव काल निवृत्ति करनी चाहिये । 1 तदनु अपना पवित समय ज्ञान या ध्यान में ही । व्यतीत करना चाहिये क्योंकि शुक्लध्यान द्वारा अनत जन्मों 1 के सचय किये हुए कर्म अत्यत स्वल्प काल में ही क्षय किये जा सक्त हैं।
. सर्व प्रतिरूप धर्म में सर्व प्रकार की क्रियाओं का । निषेध किया जाता है। जिससे शीघ्र ही मोक्ष उपलब्ध हो
जाता है। इस प्रकार की क्रियाआ के करने से उसे चारिजात्मा कहाजाता है क्योंकि यह व्यवहारिक में भी सुप्रसिद्ध है कि अमुक सदाचारी आत्मा है और कदाचारी (दुराचारी) आत्मा है।
जव सर्ववृत्ति का कथन किया गया है तो इस कथन से खत ही सिद्ध होजाता है कि देशव्रत्ती का भी कथन होना चाहिये ।
जिस प्रकार सर्वव्रत का कथन सूनों म किया गया है ठीक उसी प्रकार प्रसगवश से देशव्रत का भी कथन किया गया है। जैसे कि जर कोई आत्मा गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट होना चाहे तय . याती का अवश्यमेन ध्यान करना